महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 32 श्लोक 60-66

द्वात्रिंश (32) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: द्वात्रिंश अध्याय: श्लोक 60-66 का हिन्दी अनुवाद


शल्य! मैं कर्ण को अर्जुन से अधिक गुणवान मानता हूँ और यह सारा जगत आपको वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण से श्रेष्ठ मानता है। ‘नरश्रेष्ठ! कर्ण तो अर्जुन से केवल अस्त्र-ज्ञान में ही बढ़ा-चढ़ा है, परंतु आप श्रीकृष्ण से अश्वविद्या और बल दोनों में बड़े हैं। 'मद्रराजकुमार! महामनस्वी श्रीकृष्ण जिस प्रकार अश्वविद्या का रहस्य जानते हैं, वैसा ही, बल्कि उससे भी दूना आप जानते हैं'।

शल्य ने कहा-कौरव! गान्धारीपुत्र! तुम सारी सेना के बीच में जो मुझे देवकीनन्दन श्रीकृष्ण से भी बढ़कर बता रहे हो, इससे मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। वीर! जैसा तुम चाहते हो उसके अनुसार मैं पाण्डव-शिरोमणि अर्जुन के साथ युद्ध करते हुए यशस्वी कर्ण का सारथि कर्म अब स्वीकार किये लेता हूँ। परंतु वीरवर! कर्ण के साथ मेरी एक शर्त रहेगी। 'मैं इसके समीप, जैसी मेरी इच्छा हो, वैसी बातें कर सकता हूँ।' संजय ने कहा- भारत! भरतभूषण नरेश! इस पर कर्ण सहित आपके पुत्र ने ‘बहुत अच्छा ‘कहकर शल्य की शर्त स्वीकार कर ली।

इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में शल्य का सारथि कर्म विषयक बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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