महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 45 श्लोक 14-21

पंचचत्वारिंश (45) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सनत्सुजात पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 14-21 का हिन्दी अनुवाद
  • जो धनी गृहस्थ इस प्रकार गुणवान, त्यागी और सात्त्विक होता है, वह अपनी पाँचों इन्द्रियों से पाँचों विषयों को हटा देता है। (14)
  • जो वैराग्य की कमी के कारण सत्त्व से भ्रष्‍ट हो गये हैं, ऐसे मनुष्‍यों के दिव्य लोकों की प्राप्ति के संकल्प से संचित किया हुआ यह इन्द्रिय निग्रहरूप तप समुद्र होने पर भी केवल ऊर्ध्‍व लोकों की प्राप्ति का कारण होता है मुक्ति का नहीं। (15)
  • क्योंकि सत्यस्वरूप ब्रह्म का बोध न होने से ही इन सकाम यज्ञों की वृद्धि होती है। किसी का यज्ञ मन से, किसी का वाणी से और किसी का क्रिया के द्वारा सम्पन्न होता है। (16)
  • संकल्प सिद्ध अर्थात सकाम पुरुष से संकल्प रहित यानि निषकाम पुरुष की स्थिति ऊँची होती है; किंतु ब्रह्मवेत्ता की स्थिति उससे भी विशिष्‍ट है। इसके सिवा एक बात और बताता हूँ, सुनो। (17)
  • यह महत्त्वपूर्ण शास्त्र परम यशरूप परमात्मा की प्राप्ति कराने वाला है, इसे शिष्‍यों को अवश्‍य पढा़ना चाहिये। परमात्मा से भिन्न यह सारा दृश्‍य-प्रपंच वाणी का विकार मात्र है- ऐसा विद्वान लोग कहते हैं। इस योगशास्त्र में यह परमात्म विषयक सम्पूर्ण ज्ञान प्रतिष्ठित है; इसे जो जान लेते हैं, वे अमर हो जाते हैं अर्थात जन्म-मरण से मुक्त हो जाते हैं। (18)
  • राजन! निष्‍काम भाव के बिना किये हुए केवल पुण्‍य कर्म के द्वारा सत्यस्वरूप ब्रह्म को नहीं जीता जा सकता। अथवा जो हवन या यज्ञ किया जाता है, उससे भी अज्ञानी पुरुष अमरत्व मुक्ति को नहीं पा सकता तथा अन्त-काल में उसे शान्ति भी नहीं मिलती। (19)
  • इसलिये सब प्रकार की चेष्‍टा से रहित होकर एकान्त में उपासना करे, मन से भी कोई चेष्‍टा न होने दे तथा स्तुति में राग और निन्दा में द्वेष न करे। (20)
  • राजन! उपर्युक्त साधन करने से मनुष्‍य यहाँ ही ब्रह्म का साक्षात्कार करके उसमें विलीन हो जाता हैं। विद्वन! वेदों में क्रमश: विचार करके जो मैंने जाना है, वही तुम्हें बता रहा हूँ। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत सनत्सुजातपर्व में सनत्सुजातवाक्यविषयक पैंतालीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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