अष्टाविंश (28) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 8-14 का हिन्दी अनुवाद
संजय! इस धरातल पर जो कुछ भी धन-वैभव विद्यमान है, नित्य यौवन से युक्त रहने वाले देवताओं के यहाँ जो धनराशि है, उससे भी उत्कृष्ट जो प्रजापति का धन है तथा जो स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक का सम्पूर्ण वैभव है, यह सब मिल रहा है, तो भी मैं उसे अधर्म से लेना नहीं चाहूंगा। यहाँ धर्म के स्वामी, कुशल नीतिज्ञ, ब्राह्मण भक्त और मनीषी भगवान श्रीकृष्ण बैठे हैं, जो नाना प्रकार के महान बलशाली क्षत्रियों तथा भोजवंशियों का शासन करते हैं। यदि मैं सामनीति अथवा संधि का परित्याग करके निंदा का पात्र होता होऊं या युद्ध के लिये उद्यत होकर अपने धर्म का उल्लंघन करता होऊं तो ये महायश्स्वी वसुदेवनंदन भगवान श्रीकृष्ण अपने विचार प्रकट करें; क्योंकि ये दोनों पक्षों का हित चाहने वाले हैं। ये सात्यकि, ये चेदिदेश के लोग, ये अंधक, वृष्णि, भोज, कुकुर तथा सृंजयवंश के क्षत्रिय इन्हीं भगवान वासुदेव की सलाह से चलकर अपने शत्रुओं को बंदी बनाते और सुहृदों-को आनन्दित करते हैं। श्रीकृष्ण की बतायी हुई नीति के अनुसार बर्ताव करने से वृष्णि और अंधकवंश के सभी उग्रसेन आदि क्षत्रिय इन्द्र के समान शक्तिशाली हो गये हैं तथा सभी यादव मनस्वी, सत्यपरायण, महान बलशाली और भोग सामग्री से समपन्न हुए हैं।[1] काशीनरेश बभ्रु श्रीकृष्ण को ही शासक बन्धु के रूप में पाकर उत्तम राज्य-लक्ष्मी के अधिकारी हुए हैं। भगवान श्रीकृष्ण बभ्रु के लिये समस्त मनोवांञ्छित भोगों की वर्षा उसी प्रकार करते हैं, जैसे वर्षाकाल में मेघ प्रजाओं के लिये जल की वृष्टि करता है। तात संजय! तुम्हें मालूम होना चाहिये कि भगवान श्रीकृष्ण ऐसे प्रभावशाली और विद्वान हैं। ये प्रत्येक कर्म-का अंतिम परिणाम जानते हैं। ये हमारे सबसे बढ़कर प्रिय तथा श्रेष्ठतम पुरुष हैं। मैं इनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता। इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंनर्गत संजययानपर्व में युघिष्ठिर वचन संबंधों अट्ठाईसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौण्ड्रक वासुदेव के छोटे भाई
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