महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 157 श्लोक 27-35

सप्‍तञ्चाशदधिकशततम (157) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सैन्यनिर्याण पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्‍तञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 27-35 का हिन्दी अनुवाद
  • इसमें संदेह नहीं कि यहाँ जो-जो क्षत्रिय नरेश एकत्र हुए हैं, उन सबको काल ने अपना ग्रास बनाने के लिये पका दिया है। महान जनसंहार होने वाला है। इसमें रक्त ओर मांस की कीच जम जायगी। (27)
  • मैंने एकान्‍त में श्रीकृष्‍ण से बार-बार कहा था कि मधुसूदन! अपने सभी सम्‍‍बन्धियों के प्रति एक-सा बर्ताव करो; क्‍योंकि हमारे लिये जैसे पाण्‍डव हैं, वैसा ही राजा दुर्योधन है। उसकी भी सहायता करो। वह बार-बार अपने यहाँ चक्‍कर लगाता है। (28-29)
  • परंतु युधिष्ठिर! तुम्‍हारे लिये ही मधुसुदन श्रीकृष्‍ण ने मेरी उस बात को नहीं माना है। ये अर्जुन को देखकर सब प्रकार से उसी पर निछावर हो रहे हैं। (30)
  • मेरा निश्चित विश्‍वास है कि इस युद्ध में पाण्‍डवों की अवश्‍य विजय होगी। भारत! श्रीकृष्‍ण का भी ऐसा दृढ़ संकल्‍प है। (31)
  • मैं तो श्रीकृष्‍ण के बिना इस सम्‍पूर्ण जगत की ओर आँख उठाकर देख भी नहीं सकता; अत: ये केशव जो कुछ करना चाहते है, मैं उसी का अनुसरण करता हूँ। (32)
  • भीमसेन और दुर्योधन ये दोनों ही वीर मेरे‍ शिष्‍य एवं गदा युद्ध में कुशल हैं; अत: मैं इन दोनों पर एक-सा स्‍नेह रखता हूँ। (33)
  • इसलिये मैं सरस्‍वती नदी के तटवर्ती तीर्थों का सेवन करने के लिये जाऊँगा। क्‍योंकि मैं नष्‍ट होते हुए कुरुवंशियों को उस अवस्‍था में देखकर उनकी उपेक्षा नहीं कर सकूँगा (34)
  • ऐसा कहकर महाबाहु बलरामजी पाण्‍डवों से विदा ले मधुसूदन श्रीकृष्‍ण को संतुष्‍ट करके तीर्थ या‍त्रा के लिये चले गये। (35)

इस प्रकार श्रीमाहभारत उद्यागपर्व के अनतर्गत सैन्‍यनिर्वाणपर्व में बलरामजी के तीर्थयात्रा के लिये जानेसे सम्‍बन्‍ध रखनेवाला एक सौ सत्‍तावनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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