महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 124 श्लोक 52-62

चतुर्विंशत्‍यधिकशततम (124) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्विंशत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 52-62 का हिन्दी अनुवाद
  • ‘भरतश्रेष्ठ! यह नरसंहार करने से तुम्हें क्या लाभ होगा? तुम अपने पक्ष में किसी ऐसे पुरुष को ढूंढ निकालो, जो उस अर्जुन पर विजय पा सके, जिसके जीते जाने पर तुम्हारे पक्ष की विजय मान ली जाये। (52)
  • ‘जिन्होंने खानडववन में गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं को जीत लिया था, उन अर्जुन के साथ कौन मनुष्य युद्ध कर सकेगा? (53)
  • ‘इसके सिवा विराटनगर में जो बहुत से महारथी योद्धाओं के साथ एक अर्जुन के युद्ध की अत्यंत अद्भुत घटना सुनी जाती है, वह एक ही युद्ध के भावी परिणाम को बताने के लिए प्रयाप्त है। (54)
  • ‘जिन्होंने युद्ध में साक्षात महादेव शिव को अपने पराक्रम से संतुष्ट किया है, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले उन अजेय, दुर्धर्ष एवं विजयशील बलशाली वीर अर्जुन को तुम युद्ध में जीतने की आशा रखते हो, यह बड़े आश्चर्य की बात है। (55)
  • ‘फिर मैं जिसका सारथी बनकर साथ रहूँ और वह अर्जुन प्रतिपक्षी होकर युद्ध के लिए आए, उस समय साक्षात इंद्र ही क्यों न हों, कौन अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहेगा? (56)
  • ‘जो समरभूमि में अर्जुन को जीत सकता है, वह मानो अपनी दोनों भुजाओं पर पृथ्वी को उठा सकता है, कुपित होने पर इस समस्त प्रजा को दग्ध कर सकता है और देवताओं को स्वर्ग से नीचे गिरा सकता है। (57)
  • दुर्योधन! अपने इन पुत्रों, भाइयों, कुटुंबीजनों और सगे-संबंधियों की और तो देखो। ये श्रेष्ठ भरतवंशी तुम्हारे कारण नष्ट न हो जाएँ। (58)
  • ‘नरेश्वर! कौरववंश बचा रहे, इस कुल का पराभव न हो और तुम भी अपनी कीर्ति का नाश करके कुलघाती न कहलाओ। (59)
  • ‘महारथी पांडव तुम्हीं को युवराज के पद पर स्थापित करेंगे और तुम्हारे पिता राजा धृतराष्ट्र को महाराज के पद पर बनाए रखेंगे। (60)
  • ‘तात! अपने घर में आने को उद्यत हुई राजलक्ष्मी का अपमान न करो। कुंती के पुत्रों को आधा राज्य देकर स्वयं विशाल संपती का उपभोग करो। (61)
  • पांडवों के साथ संधि करके और अपने हितैषी सुहृदयों की बात मानकर मित्रों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहते हुए तुम दीर्घकाल तक कल्याण के भागी बने रहोगे।' (62)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योग पर्व के अंतर्गत भगवद्यान पर्व में भग्वद्वाक्यसंबंधी एक सौ चौबीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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