महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 114 श्लोक 16-20

चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतुर्दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-20 का हिन्दी अनुवाद


  • 'अत: ये द्विजश्रेष्ठ गालव महान शोक से संतप्त हो गुरुदक्षिणा चुकाने में असमर्थ हो गए हैं और इसलिए आपकी शरण में आए हैं। (16)
  • 'पुरुषसिंह! आपसे भिक्षा ग्रहण करके गुरु को पूर्वोक्त धन देकर ये क्लेश रहित हो महान तप में संलग्न हो जाएँगे। (17)
  • अपनी तपस्या के एक अंश से ये आपको भी संयुक्त करेंगे। यद्यपि आप अपनी राजर्षिजनोचित तपस्या से पूर्ण हैं, तथापि ये अपने ब्राह्म तप से आपको और भी परिपूर्ण करेंगे। (18)
  • 'नरेश्वर! भूपाल! यहाँ दान किए हुए घोड़ों के शरीर में जितने रोएँ होते हैं, दान करने वाले लोगों को परलोक में उतने ही घोड़े प्राप्त होते हैं। (19)
  • 'ये गालव दान लेने के सुयोग्य पात्र हैं और आप दान करने के श्रेष्ठ अधिकारी हैं। जैसे शंख में दूध रखा गया हो, उसी प्रकार इनके हाथ में दिये हुए आपके इस दान की शोभा होगी।' (20)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ चौदहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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