षट्सप्ततितम (76) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 38-51 का हिन्दी अनुवाद
शुक्राचार्य ने कहा- बेटी! बृहस्पति के पुत्र कच मर गये। मैंने विद्या से उन्हें कई बार जिलाया, तो भी वे इस प्रकार मार दिये जाते हैं, अब मैं क्या करूं। देवयानी! तुम इस प्रकार शोक न करो, रोओ मत। तुम-जैसी शक्तिशालिनी स्त्री किसी मरने वाले के लिये शोक नहीं करती। तुम्हें तो वेद, ब्राह्मण, इन्द्र सहित सब देवता, वसुगण, अश्विनीकुमार, दैत्य तथा सम्पूर्ण जगत् के प्राणी मेरे प्रभाव से तीनों संध्याओं के समय मस्तक झुकाकर प्रणाम करते हैं। अब उस ब्राह्मण को जिलाना असम्भव है। यदि जीवित हो जाय, तो फिर दैत्यों द्वारा मार डाला जायेगा (अत: उसे जिलाने से कोई लाभ नहीं है)। देवयानी बोली- पिताजी अत्यन्त वृद्ध महर्षि अंगिरा जिनके पितामह हैं, तपस्या के भण्डार बृहस्पति जिनके पिता हैं, जो ऋषि के पुत्र और ऋषि के ही पौत्र हैं; उन ब्रह्मचारी कच के लिये मैं कैसे शोक न करूं और कैसे न रोऊं? तात! ये ब्रह्मचर्य पालन में रत थे, तपस्या ही उनका धन था। वे सदा ही सजग रहने वाले और कार्य करने में कुशल थे। इसलिये कच मुझे बहुत प्रिय थे। वे सदा मेरे मन के अनुरुप चलते थे। अब मैं भोजन का त्याग कर दूंगी और कच जिस मार्ग पर गये हैं, वहीं मैं भी चली जाऊंगी।' वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! देवयानी के कहने से उसके दु:ख से दुखी हुए महर्षि शुक्राचार्य ने कच को पुकारा और दैत्यों के प्रति कुपित होकर बोले- ‘इसमें तनिक भी संशय नहीं है कि असुर लोग मुझसे द्वेष करते हैं। तभी तो यहाँ आये हुए मेरे शिष्यों को ये लोग मार डालते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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