महाभारत आदि पर्व अध्याय 74 श्लोक 130-133

चतु:सप्ततितम (74) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: चतु:सप्ततितम अध्‍याय: श्लोक 130-133 का हिन्दी अनुवाद


महर्षि कण्व ने आचार्य होकर भरत से प्रचुर दक्षिणाओं से युक्त ‘गोवितत’ नामक अश्वमेध यज्ञ का विधिपूर्वक अनुष्ठान करवाया। श्रीमान् भरत ने उस यज्ञ का पूरा फल प्राप्त किया। उसमें महाराज भरत ने आचार्य कण्‍व को एक सहस्र पह्म स्‍वर्ण मुद्राऐं दक्षिणा रूप में दीं। भरत से ही इस भूखण्‍ड का नाम भारत (अथवा भूमि का नाम भारती) हुआ। उन्‍हीं से यह कौरववंश भरतवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उनके बाद उस कुल में पहले तथा आज भी जो राजा हो गये हैं, वे भारत (भरतवंशी) कहे जाते हैं। भरत के कुल में देवताओं के समान महापराक्रमी तथा ब्रह्मा जी के समान तेजस्‍वी बहुत-से राजर्षि हो गये हैं; जिनके सम्‍पूर्ण नामों की गणना असम्‍भव है। जनमेजय! इनमें जो मुख्‍य हैं, उन्‍हीं के नामों का तुमसे वर्णन करूंगा। वे सभी महाभाग नरेश देवताओं के समान तेजस्‍वी तथा सत्‍य, सरलता आदि धर्मों में तत्‍पर रहने वाले थे।

इस प्रकार महाभारत आदि पर्व के अंतर्गत सम्भव पर्व में शकुंतलोपाख्यान-विषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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