षट्षष्टितम (66) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 64-72 का हिन्दी अनुवाद
रोहिणी से गाय-बैल और गन्धर्वी से घोड़े ही पुत्र रूप में उत्पन्न्न हुए। अनला ने सात प्रकार के वृक्षों[1] को उत्पन्न किया, जिनमें पिण्डाकार फल लगते हैं। अनला के शुकी नाम की एक कन्या भी हुई कंक पक्षी सुरसा का पुत्र है। अरुण की पत्नी श्येनी ने दो महाबली और पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किये एक का नाम था सम्पाती और दूसरे का जटायु बड़ा शक्तिशाली था। सुरसा और कद्रु ने नाग और पन्नग जाति के पुत्रों को उत्पन्न किया। विनता के दो ही पुत्र विख्यात हैं, गरुड़ और अरुण। सुरसा ने एक सौ एक सिर वाले सर्पों को जन्म दिया था। सुरसा से तीन कमलनयनी कन्याऐं उत्पन्न हुई जो वनस्पतियों, वृक्षों और लता-गुल्मों की जननी हुई। उनके नाम इस प्रकार है- अनला, रुहा और विरुधा। जो वृक्ष बिना फूल के ही फल ग्रहण करते हैं उन सबको अनला का पुत्र जानना चाहिये; वे ही वनस्पति कहलाते हैं। प्रभो! जो फूल से फल ग्रहण करते हैं उन वृक्षों को रूहा की संतान समझो। लता, गुल्म, बल्ली, बाँस और तिनकों की जितनी जातियां उन सबकी उत्पत्ति विरूधा से हुई है। यहाँ वंश वर्णन समाप्त होता है। बुद्धिमानों में श्रेष्ठ राजा जनमेजय! इस प्रकार मैंने सम्पूर्ण महाभूतों की उत्पत्ति का भलि-भाँति वर्णन किया है। जिसे अच्छी तरह सुनकर मनुष्य सब पापों से पूर्णतः मुक्त हो जाता है और सर्वज्ञता तथा उत्तम गति प्राप्त कर लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ खर्जूरं रालहिंतालौ ताली खर्जूरिका तथा। गुणका नारिकेलश्च सप्त पिण्डफला द्रूमा:॥ (खजूर, ताल, हिंताल, ताली, छोटे खजूर, सोपारी और नारियल-ये सात पिण्डाकार फलवाले वृक्ष है।
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