महाभारत आदि पर्व अध्याय 63 श्लोक 111-127

त्रिषष्टितम (63) अध्‍याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 111-127 का हिन्दी अनुवाद


प्रह्राद का शिष्‍य नग्नजित राजा सुबल के रूप में प्रकट हुआ। देवताओं के कोख से उसकी संतति (शकुनि) धर्म का नाश करने वाली हुई। गान्धारराज सुबल का पुत्र शकुनि एवं सौबल नाम से विख्यात हुआ तथा उनकी पुत्री गान्धारी दुर्योधन की माता थी। ये दोनों भाई-बहिन अर्थ-शास्त्र के ज्ञान में निपुण थे। राजा विचित्रवीर्य की क्षेत्रभूता अम्बिका और अम्बालिका के गर्भ से कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा राजा धृतराष्ट्र और महाबली पाण्डु का जन्म हुआ। द्वैपायन व्यास से ही शूद्र जातीय स्त्री के गर्भ से विदुर जी का जन्म हुआ था। वे धर्म और अर्थ के ज्ञान में निपुण, बुद्धिमान, मेधावी और निष्पाप थे। पाण्डु से दो स्त्रियों के द्वारा पृथक-पृथक पांच पुत्र उत्पन्न हुये, जो सब-के-सब देवताओं के समान थे।

उन सबमें सबसे बड़े युधिष्ठिर थे। वे उत्तम गुणों में भी सबसे बढ़-चढ़कर थे। युधिष्ठिर धर्म से भीमसेन वायु देवता से, सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ श्रीमान अर्जुन इन्द्र देव से तथा सुन्दर रूप वाले नकुल और सहदेव अश्विनी कुमारों से उत्पन्न हुए थे। वे जुड़वे पैदा हुये थे। नकुल और सहदेव सदा गुरुजनों की सेवा में तत्पर रहते थे। परमबुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि सौ पुत्र हुए। इनके अतिरिक्त युयुत्सु भी उन्हीं का पुत्र था। वह वैश्‍य जातिय माता से उत्पन्न होने के कारण ‘करण’[1] कहलाता था। भरतवंशी जनमेजय! धृतराष्ट्र के पुत्रों में दुर्योधन, दुःशासन, दुःसह, दुर्मर्षण, विकर्ण, चित्रसेन, विविंशति, जय, सत्यव्रत, पुरुमित्र तथा वैश्‍यापुत्र युयुत्सु- ये ग्यारह महारथी थे। अर्जुन द्वारा सुभद्रा के गर्भ से अभिमन्यु का जन्म हुआ। वह महात्मा पाण्डु का पौत्र और भगवान श्रीकृष्ण का भान्जा था।

पाण्डवों द्वारा द्रौपदी के गर्भ से पांच पुत्र उत्पन्न हुए थे, जो बड़े ही सुन्दर और सब शास्त्रों में निपुण थे। युधिष्ठिर से प्रतिविन्ध्य, भीमसेन से सुतसोम, अर्जुन से श्रुतकीर्ति, नकुल से शतानीक तथा सहदेव से प्रतापी श्रुतसेन का जन्म हुआ था। भीमसेन के द्वारा हिडिम्बा से वन में घटोत्कच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। राजा द्रुपद से शिखण्डी नाम की एक कन्या हुई, जो आगे चलकर पुत्ररूप में परिणित हो गयी। स्थूणाकर्ण नामक यक्ष ने उसका प्रिय करने की इच्छा से उसे पुरुष बना दिया था। कौरवों के उस महासमर में युद्ध करने के लिये राजाओं के कई लाख योद्धा आये थे। दस हजार वर्षों तक गिनती की जाये तो भी उन असंख्य योद्वाओं के नाम पूर्णतः नहीं बताये जा सकते। यहाँ कुछ मुख्य-मुख्य राजाओं के नाम बताये गये हैं, जिनके चरित्रों से इस महाभारत-कथा का विस्तार हुआ है।

इस प्रकार महाभारत आदि पर्व के अंतर्गत अंशावतरण पर्व में व्यास आदि की उत्पत्ति से सम्बंध रखने वाला तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैश्यायां क्षत्रियाज्जात: करण: परिकीर्तित:। (वैश्य माता और क्षत्रिय पिता से उत्पन्न 'करण' कहलाता है) इस धर्मशास्त्रीय वचन के अनुसार युयुत्सु की 'करण' संज्ञा बतायी गयी है।

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