तृतीय (3) अध्याय: आदि पर्व (पौष्य पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 67-80 का हिन्दी अनुवाद
तब अश्विनी कुमार उससे बोले, ‘तुम्हारी इस गुरुभक्ति से हम बड़े प्रसन्न हैं। तुम्हारे उपाध्याय के दाँत काले लोहे के समान हैं। तुम्हारे दाँत सुवर्णमय हो जायँगे। तुम्हारी आँखे भी ठीक हो जायेंगी और तुम कल्याण के भागी भी होओगे।' अश्विनीकुमारों के ऐसा कहने पर उपमन्यु को आँखें मिल गयीं और उसने उपाध्याय के समीप आकर उन्हें प्रणाम किया। तथा सब बातें गुरुजी से कह सुनायीं। उपाध्याय उसके ऊपर बड़े प्रसन्न हुए। और उससे बोले- ‘जैसा अश्विनीकुमारों ने कहा है, उसी प्रकार तुम कल्याण के भागी होओगे। तुम्हारी बुद्धि में सम्पूर्ण वेद और सभी धर्मशास्त्र स्वतः स्फुरित हो जायँगे।’ इस प्रकार यह उपमन्यु की परीक्षा बतायी गयी। उन्हीं आयोद धौम्य के तीसरे शिष्य थे वेद। उन्हें उपाध्याय ने आज्ञा दी, ‘वत्स वेद! तुम कुछ काल तक यहाँ मेरे घर में निवास करो। सदा शुश्रूषा में लगे रहना, इससे तुम्हारा कल्याण होगा।' वेद ‘बहुत अच्छा’ कहकर गुरु के घर में रहने लगे। उन्होंने दीर्घकाल तक गुरु की सेवा की। गुरु जी उन्हें बैल की तरह सदा भारी बोझ ढोने में लगाये रखते थे और वे सरदी-गरमी तथा भूख-प्यास का कष्ट सहन करते हुए सभी अवस्थाओं में गुरु के अनुकूल ही रहते थे। इस प्रकार जब बहुत समय बीत गया, तब गुरु जी उन पर पूर्णतः संतुष्ट हुए। गुरु के संतोष से वेद ने श्रेय तथा सर्वज्ञता प्राप्त कर ली इस प्रकार यह वेद की परीक्षा का वृत्तान्त कहा गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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