महाभारत आदि पर्व अध्याय 33 श्लोक 19-24

त्रयस्त्रिंश (33) अध्‍याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)

Prev.png

महाभारत: आदि पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्‍याय: श्लोक 19-24 का हिन्दी अनुवाद


विहंगप्रवर गरुड़ ने उस युद्ध में वज्राहत होकर भी हँसते हुए मधुर वाणी में इन्द्र से कहा- 'देवराज! जिनकी हड्डी से यह वज्र बना है, उन महर्षि का सम्मान मैं अवश्य करूँगा। शतक्रतो! ऋषि के साथ-साथ तुम्हारा और तुम्हारे वज्र का भी आदर करूँगा; इसीलिये मैं अपनी एक पाँख जिसका तुम कहीं अन्त नहीं पा सकोगे त्याग देता हूँ।

तुम्हारे वज्र के प्रहार से मेरे शरीर में कुछ भी पीड़ा नहीं हुई है।’ ऐसा कहकर पक्षिराज ने अपना एक पंख गिरा दिया। उस गिरे हुए परम उत्तम पंख को देखकर सब प्राणियों को बड़ा हर्ष हुआ और उसी के आधार पर उन्होंने गरुड़ का नामकरण किया।

वह सुन्दर पाँख देखकर लोगों ने कहा, जिसका यह सुन्दर पर्ण (पंख) है, वह पक्षी सुपर्ण नाम से विख्यात हो। (गरुड़ पर वज्र भी निष्फल हो गया) यह महान् आश्चर्य की बात देखकर सहस्र नेत्रों वाले इन्द्र ने मन-ही-मन विचार किया, अहो! यह पक्षीरूप में कोई महान् प्राणी है, ऐसा सोचकर उन्होंने कहा।

इंद्र ने कहा- विहंगप्रवर! मैं तुम्हारे सर्वोत्तम उत्कृष्ट बल को जानना चाहता हूँ और तुम्हारे साथ ऐसी मैत्री स्थापित करना चाहता हूँ, जिसका कभी अन्त न हो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अंतर्गत आस्तीक पर्व में गरुड़चरित्रविषयक तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः