द्वात्रिंश (32) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वात्रिंश (32) अध्याय: श्लोक 18-25 का हिन्दी अनुवाद
वह आग अपनी लपटों से वहाँ के समस्त आकाश को आवृत किये हुए थी। उससे बड़ी ऊँची ज्वालाएँ उठ रही थी। वह सूर्य मण्डल की भाँति दाह उत्पन्न करती और प्रचण्ड वायु में प्रेरित हो अधिकाधिक प्रज्वलित होती रहती थी। तब वेगशाली महात्मा गरुड़ ने अपने शरीर में आठ हजार एक सौ मुख प्रकट करके उनके द्वारा नदियों का जल पी लिया और पुनः बड़े वेग से शीघ्रतापूर्वक वहाँ आकर उस जलती हुई आग पर सब जल उड़ेल दिया। इस प्रकार शत्रुओं को ताप देने वाले पक्षवाहन गरुड़ ने नदियों के जल से उस आग को बुझाकर अमृत के पास पहुँचने की इच्छा से एक दूसरा बहुत छोटा रूप धारण कर लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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