महाभारत आदि पर्व अध्याय 2 श्लोक 42-72

द्वितीय (2) अध्‍याय: आदि पर्व (पर्वसंग्रह पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 42-72 का हिन्दी अनुवाद


इसके पश्चात पौष्य, पौलोम, आस्तीक और आदि अंशावतरण पर्व हैं। तदनन्तर सम्भव पर्व का वर्ण है, जो अत्यन्त अदभुत और रोमांचकारी है। इसके पश्चात जंतुगृह (लाक्षाभवन) दाहपर्व है। तदनन्तर हिडिम्बवध पर्व है, फिर बकवध और उसके बाद चैत्ररथ पर्व है। उसके बाद पांचाल राजकुमार देवी द्रौपदी के स्वयंवर पर्व का तथा क्षत्रिय धर्म से सब राजाओं पर विजय प्राप्तिपूर्वक वैवाहिक पर्व का वर्णन है। विदुरागमन-राज्यलम्भपर्व, तत्पश्चात अर्जुन-वनवास पर्व और फिर सुभद्राहरण पर्व है। सुभद्राहरण के बाद हरणाहरण पर्व है, पुनः खाण्डवदाह पर्व है, उसी में मय-दानव के दर्शन की कथा है। इसके बाद क्रमशः सभापर्व, मन्त्रपर्व, जरासन्ध-वध पर्व और दिग्विजय पर्व का प्रवचन है। तदनन्तर राजसूय अर्धाभिहरण और शिशुपालवध पर्व कहे गये हैं।

इसके बाद क्रमशः द्यूत एवं अनुद्यूत पर्व हैं। तत्पश्चात वनयात्रा पर्व तथा किर्मीरवध पर्व है। इसके बाद अर्जुनाभिगमन पर्व जानना चाहिये और फिर कैरातपर्व आता है, जिसमें सर्वेश्वर भगवान शिव तथा अर्जुन के युद्ध का वर्णन है। तत्पश्चात इन्द्रलोकाभिगमन पर्व है, फिर धार्मिक तथा करुणोत्पादक नलोपाख्यान पर्व है। तदनन्तर बुद्धिमान कुरुराज का तीर्थयात्रा पर्व, जटासुरवध पर्व और उसके बाद यक्षयु़द्ध पर्व है। इसके पश्चात निवातकवचयुद्ध, आजगर और मार्कण्डेय समास्यापर्व क्रमशः कहे गये हैं। इसके बाद आता है द्रौपदी और सत्यभामा के संवाद का पर्व, इसके अनन्तर घोषयात्रा-पर्व है, उसी में मृगस्वप्नोद्भव और ब्रीहिद्रौणिक उपाख्यान है। तदनन्तर इन्द्रद्युम्न का आख्यान और उसके बाद द्रौपदी हरण-पर्व है। उसी में जयद्रथविमोक्षण पर्व है।

इसके बाद पतिव्रता सावित्री के पातिव्रत्य का अदभुत माहात्म्य है। फिर इसी स्थान पर रामोपाख्यान पर्व जानना चाहिये। इसके बाद क्रमशः कुण्डलाहरण और आरण्य-पर्व कहे गये हैं। तदनन्तर विराट पर्व का आरम्भ होता है, जिसमें पाण्डवों के नगर प्रवेश और समय पालन सम्बन्धी पर्व हैं। इसके बाद कीचकवध पर्व, गोग्रहण (गोहरण) पर्व तथा अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह का पर्व है। इसके पश्चात परमअद्भुत उद्योगपर्व समझना चाहिये। इसी में संजययान पर्व कहा गया है। तदनन्तर चिन्ता के कारण धृतराष्ट्र के रातभर जागने से सम्बन्ध रखने वाला प्रजागर पर्व समझना चाहिये। तत्पश्चात वह प्रसिद्ध सनत्सुजात पर्व है, जिसमें अत्यन्त गोपनीय अध्यात्म दर्शन का समावेश हुआ है। इसके पश्चात यानसन्धि तथा भगवद्यान पर्व है, इसी में मातलि का उपाख्यान, गावल-चरित, सावित्र, वामदेव तथा वैन्य-उपाख्यान, जामदग्न्य और षोडशराजिक उपाख्यान आते हैं।

फिर श्रीकृष्ण का सभा प्रवेश, विदुला का अपने पुत्र के प्रति उपदेश, युद्ध का उद्योग, सैन्य निर्याण तथा विश्वोपाख्यान- इनका क्रमशः उल्लेख हुआ है। इसी प्रसंग में महात्मा कर्ण का विवाद पर्व है। तदनन्तर कौरव एवं पाण्डव-सेना का निर्याण-पर्व है। तत्पश्चात रथातिरथ संख्या पर्व और उसके बाद क्रोध की आग प्रज्वलित करने वाला उलूकदूतागमन पर्व है। इसके बाद ही अम्बोपाख्यान पर्व है तत्पश्चात अदभुत भीष्माभिषेचन पर्व कहा गया है। इसके आगे जम्बूखण्ड-विनिर्माण-पर्व है। तदनन्तर भूमि पर्व कहा गया है, जिसमें द्वीपों के विस्तार का कीर्तन किया गया है। इसके बाद क्रमशः भगवद्गीता, भीष्म वध, द्रोणाभिषेक तथा संशप्तकवध पर्व हैं। इसके बाद अभिमन्युवध पर्व प्रतिज्ञापर्व जयद्रथवध पर्व और घटोत्कचवध पर्व हैं। फिर रोंगटे खड़े कर देने वाला द्रोणवध पर्व जानना चाहिये। तदनन्तर नारायणास्त्र मोक्षपर्व कहा गया है। फिर कर्ण पर्व और उसके बाद शल्य पर्व है। इसी पर्व में ह्नद-प्रवेश और गदायुद्ध-पर्व भी है। तदनन्तर सारस्वत पर्व है, जिसमे तीर्थों और वंशो का वर्णन किया गया है। इसके बाद है अत्यन्त वीभत्स सौप्तिक पर्व।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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