एकादशाधिकद्विशततम (211) अध्याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्यलम्भ पर्व )
महाभारत: आदि पर्व: एकादशाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 18-32 का हिन्दी अनुवाद
नारद जी कहते हैं- युधिष्ठिर! इस प्रकार सुन्द और उपसुन्द ने परस्पर संगठित और सभी बातों में एकमत रहकर भी तिलोत्तमा के लिये कुपित हो एक-दूसरे को मार डाला। अत: भरतवंशशिरोमणियों! मैं तुम सब लोगों से स्नेहवश कहता हूँ कि यदि मेरा प्रिय चाहते हो, तो ऐसा कुछ नियम बना लो, जिससे द्रौपदी के लिये तुम सब लोगों में फूट न होने पावे। तुम्हारा कल्याण हो। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! देवर्षि नारद के ऐसा कहने पर एक दूसरे के अधीन रहने वाले उन अमित तेजस्वी महात्मा पाण्डवों ने देवर्षि के सामने ही यह नियम बनाया। 'हममें से प्रत्येक घर में पापरहित द्रौपदी एक-एक वर्ष निवास करें। द्रौपदी के साथ एकान्त में बैठे हुए हमसें से एक भाई को यदि दूसरा देख ले, तो वह बारह वर्षों तक ब्रह्मचर्यपूर्वक वन में निवास करे। धर्म का आचरण करने वाले पाण्डवों द्वारा यह नियम स्वीकार कर लिये जाने पर महामुनि नारद जी प्रसन्न हो अभीष्ट स्थान को चले गये। भारत! इस प्रकार नारद जी की प्रेरणा से पाण्डवों ने पहले ही नियम बना लिया था। इसीलिये वे सब आपस में कभी एक दूसरे के विरोधी नहीं हुए। नरेश्वर जनमेजय! उस समय जो बातें जिस प्रकार घटित हुई थीं, वे सब मैंने तुम्हें विस्तारपूर्वक बतायी हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्तर्गत विदुरागमन-विषयक पर्व में सुन्दोपसुन्दोपाख्यान विषयक दौ सौ ग्यारहवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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