षडधिकद्विशततम (206) अध्याय: आदि पर्व (विदुरागमन-राज्यलम्भ पर्व )
महाभारत: आदि पर्व: षडधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 20-25 का हिन्दी अनुवाद
फिर गान्धारी ने कहा- विदुर! यदि तुम्हें जंचे तो राजकुमारी कुन्ती को पुत्रवधू सहित शीघ्र ही पाण्डु के महल में ले जाओ और वहीं इनका सारा सामान भी पहुँचा दो। उत्तम करण, मुहूर्त और नक्षत्र सहित शुभ तिथि को उस महल में इन्हें प्रवेश करना चाहिये, जिससे कुन्ती देवी अपने घर में पुत्रों के साथ सुखपूर्वक रह सकें। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसी समय विदुर ने वैसी ही व्यवस्था की। सभी बन्धु-बान्धवों ने पाण्डवों का उसी समय अत्यन्त आदर-सत्कार किया। प्रमुख नागरिकों तथा सेठों ने भी पाण्डवों का पूजन किया। भीष्म, द्रोण, कर्ण तथा पुत्र सहित बाह्लीक ने धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों का आतिथ्य-सत्कार किया। इस प्रकार हस्तिनापुर में विहार करने वाले महात्मा पाण्डवों के सभी कार्यों में विदुर जी ही नेता थे। उन्हें इसके लिये राजा की ओर से आदेश प्राप्त हुआ था। कुछ काल तक विश्राम कर लेने पर उन महाबली महात्मा पाण्डवों को राजा धृतराष्ट्र तथा भीष्म जी ने बुलाया। धृतराष्ट्र बोले- कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर! मैं जो कुछ कह रहा हूं, उसे अपने भाइयों सहित ध्यान देकर सुनो। कुन्तीनन्दन! मेरी आज्ञा से पाण्डु ने इस राज्य को बढ़ाया और पाण्डु ने ही जगत् का पालन किया। मेरे भाई पाण्डु बड़े बलवान् थे। राजन्! वे मेरे कहने से सदा ही दुष्कर कार्य किया करते थे। कुन्तीकुमार! तुम भी यथासम्भव शीघ्र मेरी आज्ञा का पालन करो, विलम्ब न करो। मेरे दुरात्मा पुत्र दर्प और अंहकार से भरे हुए हैं। युधिष्ठिर! वे सदा मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेंगे। अपने स्वार्थ साधन में लगे हुए उन बलाभिमानी दुरात्माओं के साथ तुम्हारा फिर कोई झगड़ा खड़ा न हो जाय, इसलिये तुम खाण्डवप्रस्थ में निवास करो। वहाँ रहते समय कोई तुम्हें बाधा नहीं दे सकता; क्योंकि जैसे वज्रधारी इन्द्र देवताओं की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार कुन्तीनन्दन अर्जुन वहाँ तुम लोगों की भली-भाँति रक्षा करेंगे। तुम आधा राज्य लेकर खाण्डप्रस्थ में चलकर रहो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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