एकोननवत्यधिकशततम (189) अध्याय: आदि पर्व (स्वयंवर पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकोननवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-35 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अर्जुन की यह बात सुनकर महारथी कर्ण ब्राह्मतेज को अजेय मानते हुआ उस समय युद्ध छोड़कर हट गया। इसी समय दूसरे स्थान को अपना रणक्षेत्र बनाकर वहीं बलवान् वीर शल्य और भीमसेन एक दूसरे को ललकारते हुए दो मतवाले गजराजों की भाँति युद्ध कर रहे थे। दोनों ही विद्या, बल और युद्ध की कला से सम्पन्न थे। वे घूंसों और घुटनों से एक दूसरे को मारने लगे। दोनों एक दूसरे को दूर तक ठेल ले जाते, नीचे गिराने का प्रयत्न करते, कभी अपनी ओर खीचतें और कभी अगल-बगल से पैंतरे देकर गिराने की चेष्टा करते थे। इस प्रकार वे एक दूसरे को खींचते और मुक्कों से मारते थे। उस समय घूंसों की मार से दोनों के शरीरों पर अत्यन्त भयंकर ‘चट-चट’ शब्द हो रहा था। वे परस्पर इस प्रकार प्रहार कर रहे थे, मानो पत्थर टकरा रहे हों। लगभग दो घड़ी तक दोनों उस युद्ध में एक दूसरे को खींचते और ठेलते रहे। तदनन्तर कुरुश्रेष्ठ भीमसेन ने दोनों हाथों से शल्य को ऊपर उठाकर उस युद्ध भूमि में पटक दिया। यह देख ब्राह्मण लोग हंसने लगे। कुरुश्रेष्ठ बलवान् भीमसेन ने एक आश्चर्य की बात यह की कि महाबली शल्य को पृथ्वी पर पटककर भी मार नहीं डाला। भीमसेन के द्वारा शल्य को पछाड़ दिये जाने और अर्जुन से कर्ण के डर जाने पर सभी राजा (युद्ध का विचार छोड़) शंकित हो भीमसेन को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। और एक साथ ही बोल उठे- ‘अहो! ये दोनों श्रेष्ठ ब्राह्मण धन्य हैं। पता तो लगाओ, इनकी जन्मभूमि कहाँ है तथा ये रहने वाले कहाँ के हैं? परशुराम, द्रोण अथवा पाण्डुनन्दन अर्जुन के सिवा दूसरा ऐसा कौन है, जो युद्ध में राधानन्दन कर्ण का सामना कर सके। (इसी प्रकार) देवकीनन्दन श्रीकृष्ण अथवा शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य के सिवा दूसरा कौन है, जो समरभूमि में दुर्योधन के साथ लोहा ले सके। बलवानों में श्रेष्ठ मद्रराज शल्य को भी वीरवर बलदेव, पाण्डुनन्दन भीमसेन अथवा वीर दुर्योधन को छोड़कर दूसरा कौन रणभूमि में गिरा सकता है। अत: ब्राह्मणों से घिरे हुए इस युद्धक्षेत्र से हम लोगों को हट जाना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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