एकोनसप्तधिकशततम (169) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकोनसप्तधिकशततम अध्याय: श्लोक 69-80 का हिन्दी अनुवाद
अत: तपतीनन्दन! मनुष्यों को इस लोक में जो भी कल्याणकारी कार्य करना अभीष्ट हो, उसमें वह मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाले पुरोहितों को नियुक्त करे। जो छहों अंगोंसहित वेद के स्वाध्याय में तत्पर, र्इमानदार, सत्यवादी, धर्मात्मा ओर मन को वश में रखने वाले हों, ऐसे ही ब्राह्मण राजाओं के पुरोहित होने चाहिये। जिसके यहाँ धर्मज्ञ, वक्ता, शीलवान् और ईमानदार ब्राह्मण पुरोहित हो, उस राजा को इस लोक में निश्चय ही विजय प्राप्त होती है और मरने के बाद उसे स्वर्गलोक मिलता है। राजा को किसी अप्राप्त वस्तु या धन को प्राप्त करने अथवा उपलब्ध धन आदि की रक्षा करने के लिये गुणवान् ब्राह्मण को पुरोहित बनाना चाहिये। जो समुद्र से घिरी हुई सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार चाहे या अपने लिये ऐश्वर्य पाना चाहे, उसे पुरोहित की आज्ञा के अधीन रहना चाहिये। तपतीनन्दन! कोई भी राजा कहीं भी पुरोहित की सहायता के बिना केवल अपने बल अथवा कुलीनता के भरोसे भूमि पर विजय नहीं पाता। अत: कौरवों के कुल की वृ्द्धि करने वाले अर्जुन! आप यह जान लें कि जहाँ विद्वान ब्राह्मणों की प्रधानता हो, उसी राज्य की दीर्घकाल तक रक्षा की जा सकती है। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्तर्गत चैत्ररथ पर्व में गन्धर्वपराभव विषयक एक सौ उनहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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