पंचषष्टयधिकशततम (165) अध्याय: आदि पर्व (चैत्ररथ पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-28 का हिन्दी अनुवाद
तब पांचों पाण्डवों ने द्रुपद को युद्ध में परास्त कर दिया और मन्त्रियों सहित उन्हें कैद करके द्रोण के सम्मुख ला दिया। महेन्द्रपुत्र अर्जुन महेन्द्र पर्वत के समान दुर्घर्ष थे। जैसे महेन्द्र ने दानवराज को परास्त किया था, उसी प्रकार उन्होंने पांचालराज पर विजय पायी। अमित तेजस्वी अर्जुन का वह महान् पराक्रम देख राजा द्रुपद के समस्त बान्धवजन बड़े विस्मित हुए और मन-ही-मन कहने लगे- ‘अर्जुन के समान शक्तिशाली दूसरा कोई राजकुमार नहीं है।’ द्रोणाचार्य बोले-राजन्! मैं फिर भी तुमसे मित्रता के लिये प्रार्थना करता हूँ। यज्ञसेन! तुमने कहा था, जो राजा नहीं है, वह राजा का मित्र नहीं हो सकता; अत: मैंने राज्य-प्राप्ति के लिये तुम्हारे साथ युद्ध का प्रयास किया है। तुम गंगा के दक्षिण तट के राजा रहो और मैं उत्तर तट का। आगन्तुक ब्राह्मण कहता है- बुद्धिमान् भरद्वाजनन्दन द्रोण के यों कहने पर अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ पंचालनरेश द्रुपद ने विप्रवर द्रोण से इस प्रकार कहा- ‘महामते द्रोण! एवमस्तु, आपका कल्याण हो। आपकी जैसी राय है, उसके अनुसार हम दोनों की वही पुरानी मैत्री सदा बनी रहे’। शत्रुओं का दमन करने वाले द्रोणाचार्य और द्रुपद एक दूसरे से उपर्युक्त बातें कहकर परम उत्तम मैत्रीभाव स्थापित करके इच्छानुसार अपने-अपने स्थान को चले गये। उस समय उनका जो महान् अपमान हुआ, वह दो घड़ी के लिये भी राजा द्रुपद से निकल नहीं पाया। वे मन-ही-मन बहुत दुखी थे और उनका शरीर भी बहुत दुर्बल हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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