त्रिपंचाशदधिकशततम (153) अध्याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- अर्जुन के यों कहने पर भीम रोष से जल उठे और प्रलयकाल में वायु का जो बल प्रकट होता है, उसे उन्होंने अपने भीतर धारण कर लिया। तत्पश्चात् काले मेघ के समान उस राक्षस के शरीर को भीम ने क्रोधपूर्वक तुरंत ऊपर उठा लिया और उसे सौ बार घुमाया। इसके बाद भीम उस राक्षस से बोले- अरे निशाचर! तू व्यर्थ मांस से पुष्ट होकर व्यर्थ ही बड़ा हुआ है। तेरी बुद्धि भी व्यर्थ है। इसी से तू व्यर्थ मृत्यु के योग्य है। इसलिये आज तू व्यर्थ ही अपनी इहलीला समाप्त करेगा (बाहुयुद्ध में मृत्यु होने के कारण तू स्वर्ग और कीर्ति से वंचित हो जायगा)। राक्षस! आज तुझे मारकर मैं इस वन को निष्कण्टक एवं मंगलमय बना दूंगा, जिससे फिर तू मनुष्यों को मारकर नहीं खा पायेगा। अर्जुन बोले-भैया! यदि तुम युद्ध में इस राक्षस को अपने लिये भार समझ रहे हो तो मैं तुम्हारी सहायता करता हूँ। तुम इसे शीघ्र मार गिराओ। वृकोदर! अथवा मैं ही इसे मार डालूंगा। तुम अधिक युद्ध करके थक गये हो। अत: कुछ देर अच्छी तरह विश्राम कर लो। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! अर्जुन की यह बात सुनकर भीमसेन अत्यन्त क्रोध में भर गये। उन्होंने बल-पूर्वक राक्षस को पृथ्वी पर दे मारा और उसे रगड़ते हुए पशु की तरह मारना आरम्भ किया। इस प्रकार भीमसेन की मार पड़ने पर वह राक्षस जल से भीगे हुए नगारे की-सी ध्वनि से सम्पूर्ण वन को गुंजाता हुआ जोर-जोर से चीखने लगा। तब महाबाहु बलवान् पाण्डुनन्दन भीमसेन ने उसे दोनों भुजाओं से बांधकर उलटा मोड़ दिया और उसकी कमर तोड़-कर पाण्डवों का हर्ष बढ़ाया। हिडिम्ब को मारा गया देख वे महान् वेगशाली पाण्डव अत्यन्त हर्ष से उल्लसित हो उठे और उन्होंने शत्रुओं का दमन करने वाले नरश्रेष्ठ की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस प्रकार भयंकर पराक्रमी महात्मा भीम की प्रशंसा करके अर्जुन ने पुन: उनसे यह बात कही- ‘प्रभो! मैं समझता हूं, इस वन से नगर अब दूर नहीं है। तुम्हारा कल्याण हो। अब हम लोग शीघ्र चलें, जिससे दुर्योधन को हमारा पता न लग सके’। तब सभी पुरुषसिंह महारथी पाण्डव ‘(ठीक है,) ऐसा ही करें’ यों कहकर माता के साथ वहाँ से चल दिये। हिडिम्बा राक्षसी भी उनके साथ हो ली। इस प्रकार श्रीमहाभारत आदि पर्व के अन्तर्गत हिडिम्बवध पर्व में हिडिम्बासुर के वध से सम्बन्ध रखने वाला एक सौ तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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