द्विपंचाशदधिकशततम (152) अध्याय: आदि पर्व (हिडिम्बवध पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्विपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-34 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! अपनी बहिन-पर अत्यन्त कुद्ध हुए उस राक्षस की ओर देखकर भीमसेन हंसते हुए से इस प्रकार बोले- ‘हिडिम्ब! सुखपूर्वक सोये हुए मेरे इन भाइयों को जगाने से तेरा क्या सिद्ध होगा। खोटी बुद्धि वाले नरभक्षी राक्षस! तू मेरा वेग से आकर मुझसे भिड़। आ, मुझ पर ही प्रहार कर। हिडिम्बा स्त्री है, इसे मारना उचित नहीं है- विशेषत: इस दशा में, जबकि इसने कोई अपराध नहीं किया है। तेरा अपराध तो दूसरे के द्वारा हुआ है। यह भोली-भाली स्त्री अपने वश में नहीं हैं। शरीर के भीतर विचरने वाले कामदेव से प्रेरित होकर आज यह मुझे अपना पति बनाना चाहती हैं। राक्षसों की कीर्ति को नष्ट करने वाले दुराचारी हिडिम्ब! तेरी यह बहिन तेरी आज्ञा से ही यहाँ आयी है; परंतु मेरा रुप देखकर यह बेचारी अब मुझे चाहने लगी हैं, अत: तेरा कोई अपराध नही कर रही हैं। कामदेव के द्वारा किये हुए अपराध के कारण तुझे इसकी निन्दा नहीं करनी चाहिये। दुष्टात्मन्! तू मेरे रहते इस स्त्री को नहीं मार सकता। नरभक्षी राक्षस! तू मुझ अकेले के साथ अकेला ही भिड़ जा। आज मैं अकेला ही तुझे यमलोक भेज दूंगा। निशाचर! जैसे अत्यन्त बलवान् हाथी के पैर से दबकर किसी का भी मस्तक पिस जाता हैं, उसी प्रकार मेरे बलपूर्वक आघात से कुचला जाकर तेरा सिर फट जायेगा। आज मेरे द्वारा युद्ध में मेरा वध हो जाने पर हर्ष में भरे हुए गीध, बाज और गीदड़ धरती पर पड़े हुए तेरे अंगों को इधर-उधर घसीटेगें। आज से पहले सदा मनुष्यों को खा-खाकर तूने जिसे अपवित्र कर दिया है, उसी वन को आज मैं क्षणभर में राक्षसों-से सूना कर दूंगा। राक्षस! जैसे सिंह पर्वताकार महान् गजराज को घसीट ले जाता है, उसी प्रकार आज मेरे द्वारा बार-बार घसीटे जाने वाले तुझको तेरी बहिन अपनी आँखों देखेगी। राक्षसकुलागार! मेरे द्वारा तेरे मारे जाने पर वनवासी मनुष्य बिना किसी विघ्न-बाधा के इस वन में विचरण करेगे’। हिडिम्ब बोला- अरे ओ मनुष्य! व्यर्थ गर्जन तथा बढ़-बढ़कर बातें बनाने से क्या लाभ? यह सब कुछ पहले करके दिखा, फिर डींग हांकना; अब देर न कर। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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