चतुस्त्रिंशदधिकशततम (134) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-32 का हिन्दी अनुवाद
निष्पाप जनमेजय! इस प्रकार उन्होंने बड़ा भारी अस्त्र-कौशल दिखाया। खड्ग, धनुष और गदा आदि के भी शस्त्र कुशल अर्जुन ने अनेक पैंतरे और हाथ दिखलाये। भारत! इस प्रकार अस्त्र-कौशल दिखाने का अधिकांश कार्य जब समाप्त हो चला, मनुष्यों का कोलाहल बाजे-गाजे का शब्द जब शांत होने लगा, उसी समय दरवाजे की ओर से किसी का अपनी भुजाओं पर ताल ठोकने का भारी शब्द सुनायी पड़ा; मानों वज्र आपस में टकरा रहे हों। वह शब्द किसी वीर के महात्म्य तथा बल का सूचक था। उसे सुनकर लोग कहने लगे ‘कहीं पहाड़ तो नहीं फट गये! पृथ्वी तो नहीं विदीर्ण हो गयी! अथवा जल की धारा से परिपूर्ण घनीभूत बादलों की गंभीर गर्जना से आकाश मण्डल तो नहीं गूंज रहा है?’ राजन्! उस रंगमण्डप में बैठे हुए लोगों के मन में क्षणभर में उपर्युक्त विचार आने लगे। उस समय सभी दर्शक दरवाजे की ओर मुंह घुमाकर देखने लगे। इधर कुन्तीकुमार पांचों भाइयों से घिरे हुए आचार्य द्रोण पांच तारों वाले हस्त नक्षत्र से संयुक्त चन्द्रमा की भाँति शोभा पा रहे थे। शत्रुहन्ता बलवान दुर्योधन भी उठकर खड़ा हो गया। अश्वत्थामा सहित उसके सौ भाइयों ने आकर उसे चारों ओर से घेर लिया। हाथों में आयुध उठाये खड़े हुए अपने भाइयों से घिरा हुआ गदाधारी दुर्योधन पूर्वकाल में दानव संहार के समय देवताओं से घिरे देवराज इन्द्र के समान शोभा पाने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज