अष्टाविंशत्यधिकशततम (128) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: अष्टाविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-38 का हिन्दी अनुवाद
फिर वे नाग पाण्डुपुत्र भीम के देखते-देखते अन्तर्धान हो गये। तब महाबली कुन्तीकुमार महाबाहु भीमसेन वहाँ से उठकर शीघ्र ही अपनी माता के समीप आ गये। तदनन्तर शत्रुदमन भीम ने माता और बड़े भाई को प्रणाम करके स्नेहपूर्वक छोटे भाइयों का सिर सूंघा। माता तथा उन नरश्रेष्ठ भाइयों ने भी उन्हें हृदय से लगाया और एक दूसरे के प्रति स्नेहाधिक्य के कारण सबने भीम के आगमन से अपने सौभाग्य की सराहना की- ‘अहोभाग्य! अहोभाग्य!’ कहा। तदनन्तर महान् बल और पराक्रम से सम्पन्न भीमसेन ने दुर्योधन की वे सारी कुचेष्टाऐं अपने भाइयों को बतायीं। और नाग लोक में जो गुण-दोषपूर्ण घटनाऐं घटी थीं, उन सबको भी पाण्डुनन्दन भीम ने पूर्णरूप से कह सुनाया। तब राजा युधिष्ठिर ने भीमसेन से मतलब की बात कही- ‘भैया भीम! तुम सर्वथा चुप हो जाओ। तुम्हारे साथ जो बर्ताव किया गया है, वह कहीं किसी प्रकार भी न कहना’। यों कहकर महाबाहु धर्मराज युधिष्ठिर अपने सब भाइयों के साथ उस समय से खूब सावधान रहने लगे। दुर्योधन ने भीमसेन के प्रिय सारथि को हाथ से गला घोंट कर मार डाला। उस समय भी धर्मात्मा विदुर ने उन कुन्तीपुत्रों को यही सलाह दी कि वे चुपचाप सब कुछ सहन कर लें। धृतराष्ट्रकुमार ने भीमसेन के भोजन में पुन: नया, तीखा और सत्त्व के रूप में परिणत रोंगटे खड़े कर देने वाला कालकूट नामक विष डलवा दिया। वैश्यापुत्र युयुत्सु ने कुन्ती पुत्रों के हित की कामना से यह बात उन्हें बता दी। परंतु भीम से उस विष को भी खाकर बिना किसी विकार के पचा लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज