चतुर्दशाधिकशततम (114) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: चतुर्दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-44 का हिन्दी अनुवाद
‘महीपते! आपके निन्यान्बे पुत्र ही रहें; भारत! यदि आप अपने कुल की शान्ति चाहते हैं तो इस एक पुत्र को त्याग दें। केवल एक पुत्र के त्याग द्वारा इस सम्पूर्ण कुल का तथा समस्त जगत् का कल्याण कीजिये। नीति कहती है कि समूचे कुल के हित के लिये एक व्यक्ति को त्याग दे, गांव के हित के लिये एक कुल को छोड़ दे, देश के हित के लिये एक गांव का परित्याग कर दे और आत्मा के कल्याण के लिये सारे भूमण्डल को त्याग दे।’ विदुर तथा उन सभी श्रेष्ठ ब्राह्मणों के यों कहने पर भी पुत्र स्नेह के बन्धन में बंधे हुए राजा धृतराष्ट्र ने वैसा नहीं किया। जनमेजय! इस प्रकार राजा धृतराष्ट्र के पूरे सौ पुत्र हुए। तदनन्तर एक ही मास में गान्धारी से एक कन्या उत्पन्न हुई, जो सौ पुत्रों के अतिरिक्त थी। जिन दिनों गर्भ धारण करने के कारण गान्धारी का पेट बढ़ गया था और वह क्लेश में पड़ी रहती थी, उन दिनों महाराज धृतराष्ट्र की सेवा में एक वैश्यजातीय स्त्री रहती थी। राजन्! उस वर्ष धृतराष्ट्र के अंश से उस वैश्यजातीय भार्या के द्वारा महायशस्वी बुद्धिमान युयुत्सु का जन्म हुआ। जनमेजय! युयुत्सु करण कहे जाते थे इस प्रकार बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र के एक सौ वीर महारथी पुत्र हुए। तत्पश्चात एक कन्या हुई, जो सौ पुत्रों के अतिरिक्त थी। इन सबके सिवा महातेजस्वी परम प्रतापी वैश्यापुत्र युयुत्सु भी थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|