द्वादशाधिकशततम (112) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: द्वादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 26-45 का हिन्दी अनुवाद
पाण्डु के द्वारा परास्त हुए समस्त भूपालगण देवताओं में इन्द्र की भाँति इस पृथ्वी पर सब मनुष्यों में एक मात्र उन्हीं को शूरवीर मानने लगे। भूतल के समस्त राजाओं ने उनके सामने हाथ जोड़कर मस्तक टेक दिये और नाना प्रकार के रत्न एवं धन लेकर उनके पास आये। राजाओं के दिये हुए ढेर-के-ढेर मणि, मोती, मूंगे, स्वर्ण, चांदी, गौरत्न, अश्वरत्न, रथरत्न, हाथी, गदहे, ऊंट, भैंसे, बकरे, भेड़ें, कम्बल, मृगचर्म, रत्न, रंकुमृग के चर्म से बने हुए बिछौने आदि जो कुछ भी सामान प्राप्त हुए, उन सबको हस्तिनापुराधीश राजा पाण्डु ने ग्रहण कर लिया। वह सब लेकर महाराज पाण्डु अपने राष्ट्र के लोगों का हर्ष बढ़ाते हुए पुन: हस्तिनापुर चले आये। उस समय उनकी सवारी के अश्व आदि भी बहुत प्रसन्न थे। राजाओं में सिंह के समान पराक्रमी शान्तनु तथा परम बुद्धिमान् भरत की कीर्ति-कथा जो नष्ट-सी हो गयी थी, उसे महाराज पाण्डु ने पुनरुज्जीवित कर दिया। जिन राजाओं ने पहले कुरुदेश के धन तथा कुरुराष्ट्र का अपहरण किया था, उनको हस्तिनापुर के सिंह पाण्डु ने करद बना दिया। बहुत-से राजा तथा राजमन्त्री एकत्र होकर इस तरह की बातें कर रहे थे। उनके साथ नगर और जनपद के लोग भी इस चर्चा में सम्मिलित थे। उन सबके हृदय में पाण्डु के प्रति विश्वास तथा हर्षोल्लास छा रहा था। राजा पाण्डु जब नगर के निकट आये, तब भीष्म आदि सब कौरव उनकी अगवानी के लिये आगे बढ़ आये। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक देखा, राजा पाण्डु और उनका दल बड़े उत्साह के साथ आ रहे हैं। उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानों वे लोग हस्तिनापुर से थोड़ी ही दूर जाकर वहाँ से लौट रहे हों, उनके साथ भाँति-भाँति के धन एवं नाना प्रकार के वाहनों पर लादकर लाये हुए छोटे-बड़े रत्न, श्रेष्ठ हाथी, घोड़े, रथ, गौऐं, ऊंट तथा भेड़ आदि भी थे। भीष्म के साथ कौरवों ने वहाँ जाकर देखा, तो उस धन-वैभव का कहीं अन्त नहीं दिखाई दिया। कौसल्या[1] का आनन्द बढ़ाने वाले पाण्डु ने निकट आकर पितृव्य भीष्म के चरणों में प्रणाम किया और नगर तथा जनपद के लोगों का भी यथायोग्य सम्मान किया। शत्रुओं के राज्यों को धूल में मिलाकर कृतकृत्य होकर लौटे हुए अपने पुत्र पाण्डु का आलिंगन करके भीष्म जी हर्ष के आंसू बहाने लगे। सैकड़ों शंख, तुरही एवं नगारों की तुमुल ध्वनि से समस्त पुरवासियों को आनन्दित करते हुए पाण्डु ने हस्तिनापुर में प्रवेश किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काशिरज कोसल की कन्या होने से अम्बिका और अम्बालिका दोनों ही कौसल्या कहलाती थीं।
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज