महाभारत आदि पर्व अध्याय 100 श्लोक 99-103

शततम (100) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: शततम अध्‍याय: श्लोक 99-103 का हिन्दी अनुवाद


तत्‍पश्चात भीष्म पिता के मनोरथ की सिद्धि के लिये उस यशस्विनी निषाद कन्‍या से बोले- ‘माता जी! इस रथ पर बैठिये। अब हम लोग अपने घर चलें’।

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऐसा कहकर भीष्‍म ने उस भामिनी को रथ पर बैठा लिया और हस्तिनापुर आकर उसे महाराज शान्तनु को सौंप दिया। उनके इस दुष्‍कर कर्म की सब राजा लोग एकत्र होकर और अलग-अलग भी प्रशंसा करने लगे। सबने एक स्‍वर से कहा, ‘यह राजकुमार वास्‍तव में भीष्‍म है’। भीष्‍म के द्वारा किये हुए उस दुष्‍कर कर्म की बात सुनकर राजा शान्‍तनु बहुत संतुष्ट हुए और उन्‍होंने उन महात्‍मा भीष्‍म को स्‍वच्‍छन्‍द मृत्‍यु का वरदान दिया।

वे बोले- ‘मेरे निष्‍पाप पुत्र! तुम जब तक यहाँ जीवित रहना चाहोगे, तब तक मृत्‍यु तुम्‍हारे ऊपर अपना प्रभाव नहीं डाल सकती। तुमसे आज्ञा लेकर ही मृत्यु तुम पर अपना प्रभाव प्रकट कर सकती है’।

इस प्रकार महाभारत आदि पर्व के अंतर्गत सम्भव पर्व में सत्यवतीलाभोपाख्यान-विषयक सौवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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