महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 96 भाग 11

षण्णवतितम (96) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: षण्णवतितम अध्याय: भाग-11 का हिन्दी अनुवाद


शत्रुओं को संताप देने वाले तात! जल विशेष रूप से दुर्लभ वस्तु है; अतः जल दान करने से शाश्वत सिद्धि प्राप्त होती है। तिल, जल, दीप, अन्न और रहने के लिये घर दान करो तथा बन्धु-बान्धवों के साथ आनन्दित रहो, क्योंकि ये सब वस्तुएँ मरे हुओं के लिये दुर्लभ हैं। नरश्रेष्ठ! जल का दान सभी दानों से गुरुतर है। वह समस्त दानों से बढ़कर है; अतः उसका दान अवश्‍य ही करना चाहिये।

इस प्रकार यह सरोवर खोदाने का उत्तम फल बताया गया है। इसके बाद वृक्ष लगाने का फल भली प्रकार बताऊंगा। स्थावर भूतों की छः जातियाँ बतायी गयी हैं- वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, त्वक्सार तथा तृण, वीरुध- ये वृक्षों की जातियाँ हैं। इनके लगाने से ये-ये गुण बताये गये हैं। कटहल और आम आदि वृक्ष जाति के अन्तर्गत हैं। मन्दार और गुल्म कोटि में माने गये हैं। नागिका, मलिया आदि वल्ली के अन्तर्गत हैं। मालती आदि लताऐं हैं। बाँस और सुपारी आदि के पेड़ त्वक्सार जाति के अन्तर्गत हैं। खेत में जो घास और अनाज उगते हैं, वे सब तृण जाति में अन्तर्भूत हैं।

भरतनन्दन! वृक्ष लगाने से मनुष्यलोक में कीर्ति बनी रहती है और मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक में शुभ फल की प्राप्ति होती है। वृक्ष लगाने वाला पुरुष पितरों द्वारा भी सम्मानित होता है। देवलोक में जाने पर भी उसका नाम नहीं नष्ट होता। वह अपने बीते हुए पूर्वजों और आने वाली संतानों को भी तार देता है। अतः वृक्ष अवश्‍य लगाने चाहिये। जिसके कोई पुत्र नहीं है, उसके भी वृक्ष ही पुत्र होते हैं; इसमें संशय नहीं है। वृक्ष लगाने वाला पुरुष परलोक में जाने पर स्वर्ग में अक्षय लोकों को प्राप्त होता है।

तात! वृक्ष अपने फूलों से देवताओं का, फलों से पितरों का तथा छाया से अतिथियों का सदा पूजन करते रहते हैं। किन्नर, नाग, राक्षस, देव, गन्धर्व, मनुष्य तथा ऋषिगण भी वृक्षों का आश्रय लेते हैं। फल और फूलों से भरे हुए वृक्ष इस जगत में मनुष्यों को तृप्त करते हैं। जो वृक्ष दान करते हैं, उनके वे वृक्ष परलोक में पुत्र की भाँति पार उतारते हैं। अतः कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरुष को सदा ही सरोवर के किनारे वृक्ष लगाना चाहिये। वृक्ष लगाकर उनकी पुत्रों की भाँति रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि वे धर्मतः पुत्र माने गये हैं।

जो तालाब बनवाता है और उसके किनारे वृक्ष लगाता है, जो द्विज यज्ञ का अनुष्ठान करता है तथा दूसरे जो लोग सत्यभाषण करने वाले हैं, वे सब-के-सब स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होते हैं। इसलिए सरोवर खोदावे और उसके तट पर बगीचे भी लगावे। सदा नाना प्रकार के यज्ञों का अनुष्ठान करे और विधिपूर्वक सत्य बोले।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्‍तर्गत दानधर्म पर्व में छत्रदान और उपानहदान की प्रशंसा नामक छानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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