त्रिसप्ततितम (73) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 42-51 का हिन्दी अनुवाद
गोदान करने के पश्चात तीन दिनों तक केवल गोरस पीकर रहना चाहिये। जो गौ सीधी-सूधी हो, सुगमता से अच्छी तरह दूध दुहा लेती हो, जिसका बछड़ा भी सुन्दर हो तथा जो बन्धन तुड़ाकर भागने वाली न हो, ऐसी गौ का दान करने से उसके शरीर में जितने रोएँ होते हैं, उतने वर्षों तक दाता परलोक में सुख भोगता है। जो मनुष्य ब्राह्मण को बोझ उठाने में समर्थ, जवान, बलिष्ठ, विनीत, सीधा-साधा, हल खींचने वाला और अधिक शक्तिशाली बैल दान करता है, वह दस धेनु दान करने वाले के लोकों में जाता है। इन्द्र! जो दुर्गम वन में फँसे हुए ब्राह्मण और गौ का उद्धार करता है, वह एक ही क्षण में समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा उसे जिस पुण्य फल की प्राप्ति होती है, वह भी सुन लो। सहस्राक्ष! उसे अश्वमेध यज्ञ के समान अक्षय फल सुलभ होता है। वह मृत्यु के काल में जिस स्थिति की आकांक्षा करता है, उसे भी पा लेता है। नाना प्रकार के दिव्यलोक तथा उसके हृदय में जो-जो कामना होती है, वह सब कुछ मनुष्य उपर्युक्त सत्कर्म के प्रवाभ से प्राप्त कर लेता है। इतना ही नहीं, वह गौओं से अनुग्रहित होकर सर्वत्र पूजित होता है। शतक्रतो! जो मनुष्य उपर्युक्त विधि से वन में जाकर गौओं का अनुसरण करता है तथा निःस्पृह, संयमी और पवित्र होकर घास-पत्ते एवं गोबर खाता हुआ जीवन व्यतीत करता है, वह मन में कोई कामना न होने पर लोक में देवताओं के साथ आनन्दपूर्वक निवास करता है अथवा उसकी जहाँ इच्छा होती है, उन्हीं लोकों में चला जाता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में ब्रह्मा जी और इन्द्र का संवाद विषयक गोदान सम्बन्धी तिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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