महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 23 श्लोक 81-103

त्रयोविंश (23) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 81-103 का हिन्दी अनुवाद


जो देने की प्रतिज्ञा करके भी नहीं देते, दरिद्रों की एवं विनयशील निर्धन श्रोत्रियों की और क्षमाशीलों की निन्दा करते हैं, वे भी अवश्य ही नरक में जाते हैं। जो क्षमाशील, जितेन्द्रिय तथा दीर्घकाल तक साथ रहे हुए विद्वानों को अपना काम निकल जाने के बाद त्याग देते हैं, वे नरक में गिरते हैं। जो बालकों, बूढ़ों और सेवकों को दिये बिना ही पहले स्वयं भोजन कर लेते हैं, वे भी निःसंदेह नरकगामी होते हैं। भरतश्रेष्ठ! पहले के संकेत के अनुसार यहाँ नरकगामी मनुष्यों का वर्णन किया गया है।

अब स्वर्गलोक में जाने वालों का परिचय देता हूँ, सुनो। भरतनन्दन! जिनमें पहले देवताओं की पूजा की जाती है, उन समस्त कार्यों में यदि ब्राह्मण का अपमान किया जाये तो वह अपमान करने वाले के समस्त पुत्रों और पशुओं का नाश कर देता है। जो दान, तपस्या और सत्य के द्वारा धर्म का अनुष्ठान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। भारत! जो गुरुशुश्रूषा और तपस्यापूर्वक वेदाध्ययन करके प्रतिग्रह में आसक्त नहीं होते, वे लोग स्वर्गगामी होते हैं। जिनके प्रयत्न से मनुष्य भय, पाप, बाधा, दरिद्रता तथा व्याधिजनित पीड़ा से छुटकारा पा जाते हैं, वे लोग स्वर्ग में जाते हैं। जो क्षमावान, धीर, धर्मकार्य के लिये उद्यत रहने वाले और मांगलिक आचार से सम्पन्न हैं, वे पुरुष भी स्वर्गगामी होते हैं। जो मद, मांस, मदिरा और स्त्री से दूर रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं।

भारत! जो आश्रम, कुल, देश और नगर के निर्माता तथा संरक्षक हैं, वे पुरुष स्वर्ग में जाते हैं। जो वस्त्र, आभूषण, भोजन, पानी तथा अन्न दान करते हैं एवं दूसरों के कुटुम्ब की वृद्धि में सहायक होते हैं, वे पुरुष स्वर्गलोक में जाते हैं। जो सब प्रकार की हिंसाओं से अलग रहते हैं, सब कुछ सहते हैं और सब को आश्रय देते रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो जितेन्द्रिय होकर माता-पिता की सेवा करते हैं तथा भाइयों पर स्नेह रखते हैं, वे लोग स्वर्गलोक में जाते हैं। भारत! जो धनी, बलवान और नौजवान होकर भी अपनी इन्द्रियों को वश में रखते हैं, वे धीर पुरुष स्वर्गगामी होते हैं। जो अपराधियों के प्रति भी दया रखते हैं, जिनका स्वभाव मृदुल होता है, जो मृदुल स्वभाव वाले व्यक्तियों पर प्रेम रखते हैं तथा जिन्हें दूसरों की आराधना (सेवा) करने में ही सुख मिलता है, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो मनुष्य सहस्रों मनुष्यों को भोजन परोसते, सहस्रों को दान देते तथा सहस्रों की रक्षा करते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं। भरतश्रेष्ठ! जो सुवर्ण, गौ, पालकी और सवारी का दान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। युधिष्ठिर! जो वैवाहिक द्रव्य, दास-दासी तथा वस्त्र दान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो दूसरों के लिये आश्रम, गृह, उद्यान, कुआं, बागीचा, धर्मशाला, पौसला तथा चहार दीवारी बनवाते हैं, वे लोग स्वर्गलोक में जाते हैं। भरतनन्दन! जो याचकों की याचना के अनुसार घर, खेत और गांव प्रदान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं।

युधिष्ठिर! जो स्वयं ही पैदा करके रस, बीज और अन्न का दान करते हैं, वे पुरुष स्वर्गगामी होते हैं। जो किसी भी कुल में उत्पन्न हो बहुत-से पुत्रों और सौ वर्ष की आयु से युक्त होते हैं, दूसरों पर दया करते हैं और क्रोध को काबू में रखते हैं, वे पुरुष स्वर्गलोक में जाते हैं।

भारत! यह मैंने तुमसे परलोक में कल्याण करने वाले देवकार्य और पितृकार्य का वर्णन किया तथा प्राचीन काल में ऋषियों द्वारा बतलाये हुए दानधर्म और दान की महिमा का भी निरूपण किया है।


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में स्वर्ग और नरक में जाने वालों का वर्णन विषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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