महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 122 श्लोक 18-20

द्वाविंशत्यधिकशततम (122) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: द्वाविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-20 का हिन्दी अनुवाद


जिस प्रकार जल से शरीर का मल धुल जाता है और अग्नि की प्रभा से अन्धकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार दान और तपस्या से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

महाभाग! ब्राह्मण दान, तपस्या और भगवान विष्णु की आराधना के द्वारा संसार सागर से पार हो जाता है। जिन्होंने अपने वर्णोचित्त कर्मों का अनुष्ठान करके अन्त:करण को शुद्ध बना लिया है, तपस्या द्वारा जिनका चित्त निर्मल हो गया है तथा विद्या के प्रभाव से जिनका मोह दूर हो गया है, ऐसे मनुष्य के उद्धार के लिये भगवान श्रीहरि माने गये हैं। अतः तुम भगवान विष्णु की आराधना में तत्पर हो सदा उनके भक्त बने रहो और निरन्तर उन्हें नमस्कार करो। अष्टाक्षर मन्त्र के जप में तत्पर रहने वाले भगवद्भक्त कभी नष्ट नहीं होते। जो इस जगत में प्रणवोपासना में संलग्न और परमार्थ-साधन में तत्पर हैं, ऐसे श्रेष्ठ पुरुषों के संग से सारा पाप दूर करके अपने आपको पवित्र करो।

मैत्रेय! तुम्हारा कल्याण हो। अब मैं सावधानी के साथ अपने आश्रम को जाता हूँ। मैंने जो कुछ बताया है, उसे याद रखना; इससे तुम्हारा कल्याण होगा।

तब मैत्रेय जी ने व्यास जी को प्रणाम करके उनकी परिक्रमा की और हाथ जोड़कर कहा- 'भगवन! आप मंगल प्राप्त करें।'


इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दानधर्म पर्व में मैत्रेय की भिक्षा विषयक एक सौ बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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