महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 94 श्लोक 14-28

चतुर्नवतितम (94) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासनपर्व: चतुर्नवतितम अध्याय: श्लोक 14-28 का हिन्दी अनुवाद


यह सुनकर सभी महर्षि घबरा उठे और अगस्त्य जी से बोले- 'महर्षे! हमने आपके कमल नहीं चुराये हैं। आपको झूठा कलंक नहीं लगाना चाहिये। हम अपनी सफाई देने के लिये कठोर-से-कठोर शपथ खा सकते हैं।'

पृथ्वीनाथ! तदनन्तर वे महर्षि तथा नरेशगण वहाँ कुछ निश्‍चय करके इस धर्म पर दृष्टि रखते हुए पुत्रों और पौत्रों सहित बारी-बारी से शपथ खाने लगे।

भृगु बोले- 'मुने! जिसने आपके कमल की चोरी की है, वह गाली सुनकर बदले में गाली दे और मार खाकर बदले में स्वयं भी मारे तथा दूसरे की पीठ के मांस खाये अर्थात उपर्युक्त पापों का भागी हो।'

वसिष्ठ ने कहा- 'जिसने आपके कमल चुराये हों, वह स्वाध्याय से विमुख हो जाये। कुत्ता साथ लेकर शिकार खेले और गांव-गांव भीख मांगता रहे।'

कश्यप ने कहा- 'जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह सब जगह सब तरह की वस्तुओं की खरीद-बिक्री करे। किसी की धरोहर को हड़प लेने का लोभ करे और झृठी गवाही दे, अर्थात उपर्युक्त पापों का भागी हो।'

गौतम बोले- 'जिसने आपके कमल की चोरी की हो, वह अहंकारी, बेईमान और अयोग्य का साथ करने वाला, खेती करने वाला और ईर्ष्‍यायुक्त होकर जीवन व्यतीत करे।'

अंगिरा ने कहा- 'जो आपका कमल ले गया हो, वह अपवित्र, वेद को मिथ्या बताने वाला, ब्रह्महत्यारा और अपने पापों का प्रायश्चित न करने वाला हो। इतना ही नहीं, वह कुत्तों को साथ लेकर शिकार खेलता फिरे, अर्थात उपर्युक्त पापों का भागी हो।'

धुन्धुकुमार ने कहा- 'जिसने आपके कमलों की चोरी की हो, वह अपने मित्रों का उपकार न माने। शूद्र जाति की स्त्री से संतान उत्पन्न करे और अकेला ही स्वादिष्ट अन्न भोजन करे। अर्थात इन पापों के फल का भागी बने।'

पूरु बोले- 'जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह चिकित्सा का व्यवसाय (वैद्य या डाक्‍टर का पेशा) करे। स्त्री की कमाई खाये और ससुराल के धन पर गुजारा करे।'

दिलीप बोले- 'जो आपका कमल चुराकर ले गया हो, वह एक कूएँ पर सबके साथ पानी भरने वाले गांव में रहकर शूद्र जाति की स्त्री से सम्बन्ध रखने वाले ब्राह्मण को मृत्यु के पश्चात जिन दुःखदायी लोकों में जाना पड़ता है, उन्हीं में जाये।'

शुक्र ने कहा- 'जो आपका कमल चुरा कर ले गया हो, उसे मांस खाने का, दिन में मैथुन करने का और राजा की नौकरी करने का पाप लगे।'

जमदग्नि बोले- 'जिसने आपके कमल लिये हों, वह निषिद्ध काल में अध्ययन करे। मित्र को ही श्राद्ध में जिमावे तथा स्वयं भी शूद्र के श्राद्ध में भोजन करे।'

शिवि ने कहा- 'जो आपका कमल चुरा ले गया हो, वह अग्निहोत्र किये बिना ही मर जाये, यज्ञ में विघ्न डाले और तपस्वीजनों के साथ विरोध करे, अर्थात इन सब पापों के फल का भागी हो।'

ययाती ने कहा- 'जिसने आपके कमलों की चोरी की हो, वह व्रतधारी होकर भी ऋतुकाल से अतिरिक्त समय में स्त्री समागम करे और वेदों का खण्डन करे, अर्थात इन सब पापों के फल का भागी हो।'

नहुष बोले- 'जिसने आपके कमलों का अपहरण किया हो, वह संन्यासी होकर भी घर में रहे। यज्ञ की दीक्षा लेकर भी इच्छाचारी हो और वेतन लेकर विद्या पढ़ावे, अर्थात इन सब पापों के फल का भागी हो।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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