महरि स्याम कौ बरजति काहैं न।
जैसे हाल किए हरि हमको, भए कहूँ जग आहैं न।।
और बात इक सुनौ स्याम की, अतिहिं भए हैं ढोठ।
बसन बिना अस्नान करति हम, आपुन मींड़त पीठ।।
आपु कहति मेरौ सुत बारौ, हियौ उघारि दिखाऊँ।
सुनतहु लाज कहत नहिं आवै तुमकौं कहा लजाऊँ।।
यह बानी जुवतिनि मुख सुनि कै, हँसि बोली नँदरानी।
सूर स्याम तुम लायक नाहीं, बात तुम्हारी जानी।।772।।