महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन लागी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन लागी।
चिरजीवौ मेरौ लाड़िलौ, मैं भई सभागी।
एक पाख त्रय-मास कौ मेरौ भयौ कन्हाई।
पटकि रात उलटौ परयौ, मैं करौं बधाई।
नंद-घरनि आनंद भरी, बोलीं ब्रजनारी।
यह सुख सुनि आई सबै, सूरज बलिहारी।।68।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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