महरि पुकारति कुँवर कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ



महरि पुकारति कुँवर कन्हाई।
माखन धरयौ तिहारेहि कारन, आजु कहाँ अवसेरि लगाई।
अति कोमल, तुम्हरे मुख लायक, तुम जेंवहु मेरे नैन जुड़ाई।
धौरी-दूध औटि है राख्यौ अपनैं कर दुहि गए बनाई।
बरजति ग्वारि जसोदा कौं सब, यह कहि-कहि नीकैं जदुराई।
सूर स्याम सुत जीय मातु के, यह बियोग बरन्यौ नहिं जाई।।546।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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