महरि तैं बड़ी कूपन है माई।
दूध-दही बहु विधि कौ दीनौ, सुत सौं धरति छपाई।
बालक बहुत नहीं री तेरैं, एकै कुँवर कन्हाई।
सोऊ तौ धरही घर डोलतु, माखन खात चोराई।
वृद्ध बयस, पूरे पुन्यनि ते, तैं बहुतै निधि पाई।
ताहू के खैबे पीबे कौ, कहा करति चतुराई।
सुनहु न वचन चतुर नागरि के जसुमति नंद सुनाई।
सूर स्याम कौं चोरी कै मिस देखन है यह आई।।325।।