महरि कह्यौ री लाड़िली, किन मथन सिखायौ।
कहँ मथनी, कहँ माठ है, चित कहाँ लगायौ।।
अपनै घर यौंहीं मथै, करि प्रगट दिखायौ।
कै मेरे घर आइ कै, तैं सब बिसरायौ।।
मथन नहीं मोहिं आवई, तुम सौंह दिवायौ।
तिहिं कारन मैं आइ कै, तुव बोल रखायौ।।
नंद-घरनि तब मथि दह्यौ इहिं भाँति बतायौ।
सूर निरखि मुख स्याम कौं, तहँ ध्यान लगायौ।।716।।