मन मन हँसति राधिका गोरी।
ऐसी स्याम रहत ब्रज-भीतर, पूछति है ह्वै भोरी।।
तुम उनकौं कहुँ देख्यौ है, कै, सुनी कहति हौ बात।
चतुराई नीकैं गहि राखी, कहति सखी मुसुकात।।
कबहूँ तौ काहूँ फँग परिहौ, तबहीं लीजौ चीन्हि।
सूर स्याम कौ पीतांबर मेरी, बेसरि लीजौ छीन्हि।।1740।।