मन तौ हरिही हाथ बिकान्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


मन तौ हरिही हाथ बिकान्यौ।
निकरयौ मान गुमान सहित वह, मै यह होत न जान्यौ।।
नैननि साटि करी मिलि नैननि, उनही सौ रचि मान्यौ।
बहुत जतन करि हौ पचिहारी, फिरि इत कौ न फिरान्यौ।।
सहज सुभाइ ठगौरी डारी, सीस, फिरत अरगानौ।
'सूरदास' प्रभु-रस-बस गोपी, बिसरि गयौ तनु मानौ।।2222।।

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