मन तै ये अति ढीठ भए।
वह तौ आइ मिलत है कबहूँ ये जु गए सु गए।।
ज्यौ भुजंग काँचुरी बिसारत, फिरि नहि ताहि निहारत।
तैसैहि जाइ मिले इकटक ह्वै, डारत लाज निवारत।।
इंद्रिनि सहित मिल्यौ मन तबहीं, नैन रहे मोहि सालत।
'सूर' स्याम-सँगही-सँग डोलत, औरनि के घर घालत।।2231।।