मने चाकर राखोजी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मने चाकर राखोजी, मने[1] चाकर राखोजी ।। टेक ।।
चाकर रहसूँ बाग लगासूँ, नित उठ दरसण पासूँ ।
बिन्द्राबन की कुंज गलिन में, तेरी[2] लीला गासूँ ।
चाकरी में दरसण पाऊँ, सुमिरण पाऊँ खरची ।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनों बातां सरसी ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजन्ती माला ।
बिन्द्राबन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला ।
हरे हरे[3] नित बत्र बनाऊं, बिच बिच राखूँ क्यारी ।
सांवरिया के दरसण पाऊँ पहर कुसुम्भी सारी ।
जोगी आया जोग करण कूँ, तप करणे संन्यासी ।
हरी भजन कूं साधू आया, बिन्द्राबन के बासी ।
मीरां के प्रभु गहिर गँभीरा, सदा[4] रहोजी धीरा ।
आधीरात प्रभु दरसण दैहें, प्रेमनदी[5] के तीरा ।।154 ।।[6]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गिरधारी लाल
  2. गोबिंद
  3. ऊंचे ऊंचे महल बनाऊं बिच बिच राखूँ बारो
  4. ह्रदे
  5. जमुना जी
  6. मने = मुझे। चाकर = दास, टहलुवा। रहसूँ = रहूँगी तो। बाग = वाटिका, फलवारी। लगासूँ = लगाऊँगी। नित... यासूं = नित्यशः फलवारी से फूल चुन कर अर्पण करते समय प्रातःकाल में ही दर्शन मिल जाया करे। विन्द्रवन = वृन्दावन। गासूँ = गाऊँगी। चाकरी = वेतन। सुमिरण = नाम स्मरण। खरची = प्रतिदिन के लिए निश्चित खर्चे के रूप में। जागीरी = जागीर के रूप में। सरसी = एक से एक उत्तम हैं वा पूर्ण हो जायँगी। बन्न = वेद वा बाँध, मेड। हरे हरे = हरियाले वा हरे भरे (हरी घासों से आच्छादित )। करणकूँ = करने के लिए। गहिर गँभीरा = शांत वा स्थिर स्वभाव के, बहुत गम्भीर प्रकृति के। रहो... धीरा = धैर्य से रहो, विश्वास रक्खो। दैहैं = देंगे। प्रेम... तीरा = प्रेम भाव के क्षेत्र में पहुँचने पर।

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