मनिमय आसन आनि धरे -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
मनिमय आसन आनि धरे।
दघि मधु नीर कनक के कोपर आपुन भरत भरे।
प्रथम भरत बैठाइ बंधु कौं यह कहि पाइ परे।
हौं पावौं प्रभु-पाइ पखारन रुचि करि सो पकरे।
निज कर चरन पखारि प्रेम-रस आनँद-आसु ढरे।
जनु सीतल सौं तप्त सलिल दै, सुखित समोइ करे।
परसत पानि-चरन-पावन, दुख अँग अँग सकल हरे।
सूर सहित आमोद चरन-जल लै करि सीस धरे॥171॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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