मनखा जनम पदारथ पायो -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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मनखा जनम पदारथ पायो, ऐसी बहुर न आती ।।टेक।।
अबके मोसर ज्ञान बिचारो, राम नाम मुख गाती।
सतगुरु मिलिया सुंज पिछाणी, ऐसा ब्रह्म मैं पाती।
सगुरा सूरा अमृत पीवे, निगुरा प्यासा जाती।
मगन भया मेरा मन सुख में, गोबिन्द का गुण गाती।
साहब पाया आदि अनादि, नातर भव में जाती।
मीरां कहे इक आस आपकी, औरां सूँ सकुचाती ।।197।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनखा जनम = मपुष्य का जन्म। बहुत न आती = बार बार नहीं हुआ करता। मोसर = उपलब्ध, अवसर पर। ज्ञान... गाती = भगवान का स्मरण करते हुए आत्म-ज्ञान पर विचार करो। सुंज = सूझ गई, स्मरण हो आई। पिछाणी = पहचान, भेद की बात। ऐसा = लक्षण वा संकेत के अनुसार। पाती = पा गई। निगुरा = गुरु के उपदेशानुसार न चलने वाला। नातर नहीं तो। औरां सूँ = दूसरों से साहब = स्वामी, प्रियतम, परमात्मा।

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