मधुर मनोहर नील-श्याम-तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग वराड़ी - ताल मूल


मधुर मनोहर नील-श्याम-तन अनुपम छबिमय।
कोटि-कोटि मन्मथ-मन्मथ सौन्दर्य सुधामय॥
कहाँ दिव्य गुण-रूप-राशि वह मुनि-मन-हारिणि।
कहाँ कुरुपा मैं अति कुत्सित तन-मन-धारिणि॥
यद्यपि बाहर नहीं दीखते चिह्न बुरे अति।
पर चल रही अहं-क्षत-धारा हृदय तीव्र गति॥
ममता मनमें भरी, नहीं समता है किंचित्‌।
सदा रागमें रँगी, रागसे संतत सिचित॥
दीख रही ऊपर छायी ठंढक सुख-व्यापिनि।
भीतर जलती अग्रि कामना की संतापिनि॥
सहज हृदयका क्रोध छा रहा भीतर-बाहर।
लोभ हृदयमें भरा कर्म करवाता दुखकर॥
हु‌ए प्रकट सब दोष भयानक मेरे सम्मुख।
काँपी, डरी, निराशा-सी छायी मेरे मुख॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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