मधुकर ह्याँ नाही मन मेरौ।
गयौ जु संग नंदनंदन के, बहुरि न कीन्हौ फेरौ।।
उन नैननि मुसकानि मोल लै, कियौ परायौ चेरौ।
जाकै हाथ परयौ ताही कौ, विसरयौ बास बसेरौ।।
को सीखे ता बिनु सुनि ‘सूरज’ जोग जु काहू केरौ।
मदौ परयौ सिधाहु अनत लै, यह निरगुन मत तेरौ।।3723।।