मधुकर हमही क्यौ समुझावत।
बारंबार ज्ञान गीता कौ, अबलनि आगै गावत।।
नँदनंदन बिनु कपट कथा कत, कहि कहि रुचि उपजावत।
एक चंदन जो अंग छुधारत, कहि कैसै सचु पावत।।
देखि बिचारि तुही जिय अपने, नागर है जु कहावत।
सब सुमननि फिरि फिरि जु निरस करि, काहै कमल बधावत।।
चरन कमल, कर नयन बदन छवि, वहै कमल मन भावत।
'सूरदास' मन अलि अनुरागी, कहि कैसै सुख पावत।। 3503।।