मधुकर स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियौ तनक चितवनि मैं, चपल नैन की कोर।।
पकरे हुते हृदय उर अंतर, प्रेम प्रीति कै जोर।
गए छंड़ाइ तोरि सब बंधन, दै गए हँसनि अँकोर।।
चौकि परी जानत निसि बीती, दूत मिल्यौ इक भौर।
'सूरदास' प्रभु सरबस लूट्यौ, नागर नवलकिसोर।।3734।।