मधुकर सुनो लोचन बात।
रोकि राखे अग अगनि, तऊ उड़िउड़ि जात।।
ज्यौ कपोत वियोग व्याकुल, जात है तजि धाम।
जात यौ दृग गिरि न आवत, बिना दरजन स्याम।।
मूँदि नैन कपाट पल दै, किए घूँघट ओट।
स्वातिसुत ज्यौ जात कतहूँ, निकसि मनि नग फोट।।
स्नवन सुनि जस रहत नाम रटि रटि, कंठ करि गुनगान।।
कछुक दियौ सुहाग इनकौ, तौ सबै ये लेत।
'सूर' स्याम बिना बिलोकै, नैन चैन न देत।।3578।।