मधुकर ये नैना पै हारे।
निरखि निरखि मग कमलनैन के, प्रेम मगन भए भारे।।
ता दिन तै नीदौ पुनि नासी, चौकि परत अधिकारे।
सुपन तुरी जागन पुनि वेई, बसत जु, हृदय हमारे।।
यह निरगुन लै ताहि बतावहु, जानै याकी सारे।
'सूरदास' गोपाल छाँड़ि, को चूसै टेंटा खारे।।3579।।