मधुकर मधु माधव की जानी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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मधुकर मधु माधव की जानी।
अरथ सुनत ही प्रान हमारे, हम सनेहु घृत सानी।।
जैसै दीपक तेल तूल बल, अति दीपति परकासै।
रूप लोभ जीतिहि दरसत ही, कीट कृपन तन नासै।।
जैसै मीन छीन आमिष रस, ग्रसत बाँस अनियारे।
अटकत कंटक कुटिल हृदय मैं, तब नहि जात निकारे।।
जैसै नाद सुनाइ पारधी, धन कुरंग कौ मोहै।
कठिन बान संधान तुरत ही, तीखे सर उर पोहै।।
जैसै ठग खवाइ मदमोदक, पथिकनि कौ सुख दीन्हौ।
रस विस्वास बढ़ाइ चाइ सौ, प्रान सहित गय लीन्हौ।।
ऐसे मधुकर हरि जी हमसौ, कपट प्रीति बिस्तारी।
रस की ऊँख उखारि ‘सूर’ प्रभु, बई विरह की वारी।।3832।।

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