मधुकर बादि बचन कत बोलै।
आपुन चपल चपल कौ संगी, चपल चहूँ दिसि डोलै।।
इन बातनि कौ कौन पत्यैहै, अंतर कपट न खोलै।
कंचन काँच कपूर कटु खरी, एकहि सँग क्यौ तोलै।।
अब अपनी सी हमहिं सिखावत, मति भूलहु यह जोलै।
‘सूर’ स्याम बिनु रटत विरहिनी, विरह दाग जनि छोलै।।3869।।